शराबबंदी की विफलता पर सदन में मुख्यमंत्री का बयान शर्मसार करने वाला : अनिल कुमार

 शराबबंदी की विफलता पर सदन में मुख्यमंत्री का बयान शर्मसार करने वाला : अनिल कुमार

शराबबंदी की विफलता पर सदन में मुख्यमंत्री का बयान शर्मसार करने वाला : अनिल कुमार

नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी के नाम पर की राजस्व बंदी : अनिल कुमार

पटना : छपरा में जहरीली शराब पीने से हुई मौत के मुद्दे पर जनतांत्रिक विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार ने बिहार सरकार पर जमकर हमला बोला और बिहार में शराबबंदी को विफल बताया। साथ ही उन्होंने बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा शराब से मरने वाले लोगों के ऊपर दिए गए बयान की तीखी भर्त्सना की और कहा कि शराबबंदी की विफलता पर मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया बयान बिहार को शर्मसार करने वाला है। अनिल कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शराबबंदी की समीक्षा करने की मांग कर दी साथ ही यह भी कहा कि बिहार सरकार शराबबंदी को वापस ले और जो लोग जहरीली शराब से मर रहे हैं उसके लिए सरकार जवाबदेही तय करे।

उन्होंने कहा कि 1 अप्रैल 2016 से 2022 तक देशभर में 6162 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत होती है। बिहार सरकार अगर शराब से मरने वालों की सही रिपोर्ट सामने रखें तो यह संख्या 3000 से ज्यादा होगी। जहरीली शराब से मरने वाले लोगों की संख्या सरकार के पास नहीं है। सरकार कहती है कि महज 300 लोग ही इन 6 सालों में शराब पीकर मरे हैं। यह आंकड़ों की बाजीगरी है छपरा में ही अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है लेकिन सरकारी तंत्र उसे 50 बनाने में लगी है। उन्होंने कहा कि शराबबंदी के नाम पर आज सैकड़ों हजारों की संख्या में गरीब दलित और वंचित लोग जेल की सलाखों के पीछे हैं जबकि शराब बिकवाने वाले माफिया नेता और सरकारी तंत्र में बैठे लोग बेखौफ होकर शराब का अवैध व्यापार करने में लगे हुए हैं।

अनिल कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार ने जब सत्ता संभाली थी उस समय बिहार में शराब की लगभग 3095 दुकान बिहार में खुली थी। देसी और विदेशी शराब मिलाकर आजादी के बाद से लेकर जंगलराज के समय तक इतनी दुकानें बिहार में खुली थी और नीतीश कुमार जी के 10 के शासनकाल में इतनी ही शराब की दुकान खुली है। हर साल शराबबंदी से बबिहार सरकार को 4000 करोड़ का राजस्व घाटा होता है। नीतीश कुमार की सरकार ने पहले गांव-गांव में लोगों शराब पीने का लत लगाया और फिर कर दी शराबबंदी। जब शराबबंदी लागू हुई, उस समय शराब की 6100 दुकानें थी।

उन्होंने कहा कि शराब आज हर गांव में खुलेआम मिल रहा है। किसी भी गांव या पंचायत में जाकर पूछिए तो पता चलेगा कि शराबबंदी के बावजूद शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। इससे साफ लगता है कि नीतीश कुमार जी ने बिहार में शराबबंदी नहीं सरकारी खजाने जाने वाले राजस्व की बंदी की है। शराब से जो सालाना 4000 करोड़ रुपए सरकारी कोष में जाता था, उसे नीतीश कुमार ने माफियाओं के पास ट्रांसफर कर दिया। और सरकार की तरह माफियाओं की एक समानांतर व्यवस्था कर दी जहां 4000 करोड़ पर जाने लगे।

अनिल कुमार ने कहा कि बिहार में सरकार ने शराबबंदी के नाम पर आंख में धूल झोंकने का काम किया है, क्योंकि जब शराबबंदी के बावजूद शराब की खपत बिहार में धड़ल्ले से हो रही है। इसके बाद आए दिन लोग मर रहे हैं। किसी का लीवर खराब हो रहा है। किसी के आंख की रोशनी जा रही है, तो यह कैसी शराबबंदी है? उन्होंने पूछा कि कि शराब के माफिया कौन है इसकी पहचान करने की जरूरत है। वह कौन लोग हैं जो शराब का व्यापार बिहार में कर रहे हैं। मुझे लगता है शराब के अवैध व्यापार में सरकारी तंत्र की मिलीभगत है। ऐसे लोग सरकार में रहकर बिहार में शराब दिखाने का काम कर रहे हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार की सरकार माफिया राज पर दबाव नहीं बना पा रही है और बिहार में खुलेआम शराब बिक रही है।
इसलिए इस शराब नीति की समीक्षा कर समाप्त की जाए।

संवाददाता सम्मेलन में राष्ट्रीय महासचिव रंजन कुमार,प्रदेश अध्यक्ष संजय मंडल,प्रदेश प्रधान महासचिव अमर आज़ाद,प्रदेश महासचिव प्रेम प्रकाश,सचिव दीपक राजा,अत्यन्त पिछड़ा प्रकोष्ट के प्रदेश अध्यक्ष राज कमल पटेल उपस्थित थे।

Kundan Kumar

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