अधिवक्ता से अभिनेता तक का सफ़र एक नाम अभय शर्मा
अधिवक्ता से अभिनेता तक का सफ़र एक नाम अभय शर्मा
MUZAFFARPUR : एक मासूम।उम्र 6/7 बर्ष । उच्च विद्यालय के छात्रों का नाट्य प्रस्तुति देख अभिनय कला के प्रति जिज्ञासु हो जाता है । अपने विद्यालय के साप्ताहिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सभिनय देशभक्ति गीत गाने लग जाता है । कला एवं खेल शिक्षक उसके अभिनय से खुश होकर “सत्यवान और सावित्री ” नाटक में सावित्री की भूमिका देते हैं । साथियों और गुरूजनों से सराहना पाकर उसे अच्छा लगने लगता है । समाज में विवाह-कीर्तन में कभी राम तो कभी सिया बनाया जाता है ।समय के साथ-साथ बस कुछ यूँ ही गीत-गाना एवं अध्यन करते हुए उच्च विद्यालय का बोर्ड परीक्षा देने के उपरांत डाक भी. पी. द्वारा “फिल्म ऐक्टिंग गाईड” पुस्तक हासिल करता है ।
एक मित्र से “अमिताभ बच्चन ” नाम की पुस्तक भी मिल जाती है ।दोनों पुस्तकों का बारिक अध्यन करते-करते अब वह उच्च विद्यालय का बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण कर महाविद्यालय में आ चुका होता है। शहर का वातावरण और फिल्म देखना उसे कला के प्रति प्रखर और विशेष जिज्ञासु बना देते हैं । वह गाँव में साथियों को नाट्य मंचन हेतु जागृत करता है ।परिणामस्वरूप मंचन होता है परंतु दुर्भाग्यवश आयोजक/निर्देशक उसे कोई भी भूमिका नहीं दे पाते वावजूद वह फिल्मी डांस/गाने से तालियों की गूँज को बढाकर कार्यक्रम में चार चांद लगा देता है। समय के साथ-साथ गाँव के वरिय परिपक्व नाट्यकर्मीयों के सहयोग से मंचन करते/करवाते अनगिनत नाटकों में विशेषत: ऐंटी हिरो या यूँ कह लें कि खलनायक का चरित्र निभाने लग जाता है। उसके चिरस्मरणीय नाटकों में मुख्यत: –“दो गज कफन,-” “कफन के टुकड़े “, ” माँ का बँटवारा”, “वलिदान “,”सरदार भगत सिंह “,”फ्री स्टाइल गवाही”, “सत्य हरिश्चन्द्र ” अभी भी यादों के झरोखे से झाँकते दिख जाते हैं ।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार से सम्बद्ध “नेहरू युवा केंद्र “ने बतौर हास्य कलाकार प्रमाणपत्र भी प्रदान किए जाते हैं। कहते हैं नाटक जैसी जीवंतता और प्रमाणपत्र ने उसके कदम सिनेमा कीओर अग्रसर कर दिए। प्यास बढती गयी। शहर में रहते हुए कोई भी ओवर फिटफाट आदमी को देख फिल्म से जुडे होने का भ्रम पैदा होने लगता है और एक दिन वाकई हकिकत हो जाता है जिसके संपर्क से चर्चित भोजपुरी खलनायक श्री विजय खर्रे जी से संपर्क हो आता है।फिर मुंबई,कोलकाता के कलाकार तकनीशियन निर्देशकों से यदाकदा होटल्स में बैठकी व पटकथाओं पे समूह वार्तायें होती रहीं । इसी दौरान वहुचर्चित लेखक-निर्देशक-निर्माता-संपादक श्री बृजभूषण का ध्यान अनायास आकृष्ट होता है और मशहूर नायक राकेश पांडेय (वलम परदेशिया), प्यारे मोहन सहाय (कल हमारा है),गोपाल राय,अमीत मुन्ना जैसे सरिखे कलाकारों के साथ रामबृक्ष बेनीपुरी जी की रचीत कहानी पे बन रही फिल्म “बाल गोविन भगत” में वतौर अभिनेता एक गाना संग-संग गाने का प्रथम सुअवसर दिया जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार की कामयाबी हासिल होती है ।
अब वह मासूम 30 वर्षीय युवा एक वकिल के रूप में कचहरी के देहलिज पे कदम रखता है। कला हृदय युवक वकालत के ऊँचे निचे,खट्टे मीठे तजुर्बों को आत्मसात करते हुए फिल्मी ताक झाँक भी जारी रखता है । कभी कम कभी ज्यादा,कभी राईटर कभी डायरेक्टर,कभी सहायक कभी अभिनय करते हुए टेली फिल्म्स ,धारावाहिकों से प्यास बुझाते रहता है और बदले में जिल्लत और रुसवाई अपमान व निराशा लिए एक दिन अचानक स्वयं टेली फिल्म बना डालता है परंतु इसे प्रदर्शन के लिए कोई प्लेटफार्म नहीं मिल पाता। वावजूद थकता नहीं । उन दिनों पटना दूरदर्शन से हिन्दी धारावाहिकों की धूम मची होती हैऔर तब पटना दूरदर्शन ने उक्त टेली फिल्म को परखते हुए उसे “जागृति ” धारावाहिक निर्माण की अनुमति दे डालती है और वह एक पटकथा लेखक निर्देशक व अभिनेता के रूप में अपना पूर्ण परिचय स्थापित कर पाता है । ये बर्ष रहा होगा तकरीबन 2001 का जब उसे लगातार हिन्दी धारावाहिकों में काम और दर्शकों के प्यार मिलने लगे थे। साथ ही वकालत परिवार बच्चों का शिक्षा संरक्षण व गाईड लाईन की जिम्मेदारियां भी वढती जा रही थीं जिन्हे कला यात्रा के साथ संतुलित कर चलना इम्तहान ही तो था। दादी माँ,पिता,माता का देहान्त और जीवन में उठे पारिवारिक सामाजिक झंझावात रिश्ते नाते समाज व अपनों का कटु मधु पहचान दिल तोड़ देते हैं ।हृदय कला के बजाय घृणा से भर जाता है ।
कलात्मकता धीमी परने लगती है परंतु दम नहीं तोडती । भोजपुरी का दौर आरंभ होता है ।अब वह मुंबई का सपना छोड देता है ।अवसरों को ठुकरा देता है और झारखंड/ बिहार में ही भोजपुरी नागपुरी फिल्म,धारावाहिक व शाॅट फिल्म्स से संतुष्ट होकर वकालत पेशे में तल्लीन रहता है । बडे प्लेटफार्म ने ना तो उसे ढूँढा और न उसने उसे ढूँढा। अंततः 58बर्षीय मासूम कला हृदय आदमी स्वयं को सफल या असफल अभिनेता समझे खुद समझ नहीं पाता। उसका हृदय उन भाईयों के अलावा विशेषत: बहनों एवं माताओं को याद करते हुए आभार प्रकट करता रहता है जिनके साथ-साथ उसे काम करने का अवसर ऊपरवाले ने दिया क्यूंकि जिस देवी की प्रेरणा व आशीर्वाद से वह बचपन का सपना पूरा किया वह देवी भी स्टेज व टी.भी की कलाकार थीं जिनका वह लाडला है ।
पूछने पे वह कहता है कि छोटे बडे इतने काम हैं कि सबको बताना आसान नहीं फिर भी यादों के सहारे कुछ बता जाता है –“बाल गोविन भगत” (राष्ट्रीय पुरस्कार );” जागृति “;”चुटकी भर सिन्दूर “;”प्यार कर मेंहदी”;”पटना वाली वहू”;”राजा चलल परदेश”;”वलमा रंगरसिया ” वगैरह-करिवन 30/35 और आने वाली फिल्मों में–“इश्क जिन्दाबाद “; “बंद करऽ दवंगई”;” “मछली “;” बेटा टेम्पू ड्राईवर के”: ” पिरितिया बा अनमोल “;” । आखिर में आराम करने का इजाजत माँगते हुए कहता है कि” जिनमे आत्मसंयम, शिक्षा, सेहत ,शिष्टता,अनुशासन,मेहनत,व्यवहारकुशलता हो वो इस पनघट की डगर पे कदम बढायें।